Friday, April 22, 2016

हिम्मत मत हारिये

     अपने भविष्य के बारे में हमेंशा अच्छी आशाए कीजिये । लेकिन बुरे के लिए तैयार भी रहिये । अगर ईएसआई मुसीबत आएगी, तो हम लड़ेंगे, मुकाबला करेंगे और सहस का परिचय देंगे यह हिम्मत भी रखिये, और उम्मींदें भी अच्छी कीजिये, ख़राब उम्मीदर आप क्यों करेंगे ? क्या ख़राब उम्मीद की guaranty नहीहै, फिर आप अच्छे भविष्य की कल्पना करने में क्यों संकोच करते है ? अच्छे भविष्य की कल्पना करने के लिए आप अपने आप को तैयार कीजिये ।

१. आप से अपेक्षा :

      दूसरे के छिद्र देखने से पहले अपने छिद्र को टटोलो। किसी और की बुराई करने से पहले यह देखलो की हममे तो कोई बुराई नहीं है । यदि हो तो पहले उसे दूर करो । दुसरो की निंदा करने में जितना समय देते हो उतना समय अपने आत्मोकर्ष में लगाओ । तब स्वयं इससे सहमत होंगे की परनिंदा से बढ़ने वाले द्वेष को त्याग कर परमानंद प्राप्ति की और बढ़ रहे हो ।
संसार को जितने की इच्छा करने वाले मनुष्यो ! पहले अपने को जितने की चेष्टा करो । यदि तुम ऐसा कर सके तो एक दिन तुम्हारा विष्व विजेता बनाने का स्वप्ना पूरा होकर रहेगा । संसार का कोई भी जिव आपका विरोधी नहीं रहेंगे ।

२. आध्यात्मिक चिंतन अनिवार्य :

     जो लोग आध्यात्मिक चिंतन से विमूलह होकर केवल लोकोपकारी कार्य में लगे रहते है, वे अपनी ही सफलता अथवा सदगुनो पर मोहित हो जाते है । वे अपने आपको लोक सेवक के रूप में देखने लगते है । ईएसआई अवस्था में वे आशा रखते है की सब लोग उनके कार्य की प्रसंसा करे, उनका लाहा मने । उनका बढ़ा हुआ अभिमान उन्हें कई लोगो का सत्रु बना देता है। इससे उनकी लोक सेवा उन्हें वास्तविक लोक सेवक न बनाकर लोक विनाश का रूप धारण कर लेती है।
अद्यात्मिक चिंतन के बिना मनुख्य में विनीत भाव नै आता और न उनमे दुसरो को सुधरने की क्षमाता रह जाती है।

३.  मानवमात्र को प्रेम करो :

     हम जिस भारतीय संस्कृति, भारतीय विचारकर का प्रचार करना चाहते है, इससे आपके समस्त कष्टो का निवारण हो सकता है। राजनितिक शक्ति द्वारा आपके अधिकारो की रक्षा हो सकती है, पर जिस स्थान से हमारे सुख दुःख की उत्पति होती है उसका उसका नियंत्रण राजनितिक शक्ति नै कर सकती। यह कार्य आध्यात्मिक उन्नति से ही सम्पन हो सकता है।
मनुष्य को मनुष्य बनाने की वास्तविक शक्ति भारतीय संसृति में ही है। यह संस्कृति हमें शिखाति है की मनुष्य मनुष्य प्रेम करने को पेदा हुआ है, लड़ने मारने को नहीं। अगर हमारे सभी कार्यक्रम सही ढंग से चलते रहे तो भारतीय संस्कृति का सर्वोदय अवश्य होगा।

४. जीवन को यज्ञमय बनाओ :

     मन में सबके लिए सद्भावनाएँ रखना, संयमपूर्ण सच्चरात्रता के साथ समय व्यतीत करना, दुसरो की भले बन सके उसके लिए प्रयत्नशील रहना, वाणी को केवल सत्प्रयोजन के लिए ही बोलना, न्यायपूर्ण कामय पर ही गुजर करना, भगवन का स्मरण करते रहना, अनुकूल - प्रतिकूल परिस्थितियों में विचलित न होना - यह नियम है जिनका पालन करने से जीवन यज्ञमय बन जाता है। जब तक हम में अंहकार की भावना रहेगी तब तक त्याग की भावना का उदय होना कठिन है।

५.  हंसते रहो, मुस्कुराते रहो :

उठो ! जागो ! रुको मत !
जब तक की लक्ष्य प्राप्त न हो जाये। कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे, उद्वगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से वैर आगे नहीं बढ़ता। अपने ही मन में कह लेना चाहिए की इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन । जो अपने कर्तव्य कार्य में जुड़ा रहता है और दुसरो की अवगुणों की खोज में नहीं रहता उसे आतंरिक प्रसन्नता रहती है ।
- जीवन में उतार चढाव आते रहते है
- हँसते रहो, मुस्कुराते रहो
- इस मुख किस काम का जो हँसे नहीं, मुस्कुराये नहीं
जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते है, उन्हें दुसरो की आलोचना पर ध्यान नहीं देना चाहिए।

६. अपने आपकी समालोचना करो :

     प्रत्येक क्षण और अवसर का लाभ उठाओ। मढ़ लंबा है, समय वेग से निकल जा रहा है। अपने सम्पूर्ण आत्मबल के साथ कार्य में लग जाओ, लक्ष्य तक जरूर पहुँचोगे। किसी बात के लिए भी अपने को क्षुब्ध न करो। वह तुम्हे रास्ता दिखायेगा और सन्मार्ग

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