Monday, January 09, 2017

સર્વકર્તાહર્તા

મહાભારત નું યુદ્ધ ચાલી રહ્યુ હતુ.શ્રીકૃષ્ણ અર્જુન ના સારથિ હતા.

જેવુ અર્જુન નુ બાણ છૂટતુ, કર્ણ નો રથ ઘણો જ પાછળ જતો રહેતો.

જ્યારે કર્ણ નુ તીર છુટતુ તો અર્જુન નો રથ સાત પગલા પાછળ જતો રહેતો.

શ્રીકૃષ્ણ ભગવાને અર્જુન ની પ્રસંશા  કરવાને બદલે દર વખતે
કર્ણ માટે કહ્યુ," કેટલો વીરપુરુષ છે, આ કર્ણ.", જે અમારા રથ ને સાત પગલા પાછો પાડી દે છે.

અર્જુન ઘણો પરેશાન થયો.

અસમંજસ ની સ્થિતી મા પુછી બેઠો," હે વસુદેવ, આ પક્ષપાત કેમ?  મારા પરાક્રમ ની આપ નોધ નથી લેતા અને આપણા રથ ને માત્ર સાત પગલા પાછળ ધકેલતા કર્ણ માટે આપ દરેક વખત વાહ-વાહ કરો છો?"

શ્રીકૃષ્ણ ભગવાન બોલ્યા: પાર્થ, તને ખબર નથી.....

"તારા રથ પર મહાવીર હનુમાન,  અને હુ  સ્વયં વસુદેવ કૃષ્ણ બિરાજમાન છે."
જો અમે બન્ને ન હોત તો તારા રથ નુ અત્યારે અસ્તિત્વ પણ ન હોત.

     આ રથ ને સાત પગલા પણ  પાછળ ધકેલવુ એ કર્ણ ના મહા બળવાન હોવાનો સંકેત છે.

      અર્જુન આ સાભળીને પોતાની ક્ષુદ્રતા પર સંકોચ અનુભવવા લાગ્યો.આ તથ્ય ને અર્જુન તેથી વિશેષ ત્યારે સમજ્યો જ્યારે યુદ્ધ સમાપ્ત થયુ.

પ્રત્યેક દિવસે અર્જુન જ્યારે યુદ્ધ માથી પાછા ફરતા ત્યારે શ્રીકૃષ્ણ ભગવાન પહેલા રથ માથી ઉતરતા અને સારથિ ધર્મ હોવાથી અર્જુન ને પછી ઉતારતા.

     યુદ્ધના છેલ્લા દિવસે રથમાથી ઉતરતા પહેલા ભગવાને કહ્યુ,"અર્જુન, તમે પહેલા રથ માથી ઉતરી ને દુર ઉભા રહો."

        ભગવાન શ્રીકૃષ્ણ ના ઉતરતા જ રથ બળી ને ભસ્મ થઈ ગયો. અર્જુન આશ્ચર્યચક્તિ થઈ ગયો.

ભગવાન શ્રીકૃષ્ણે કહ્યુ" પાર્થ, તારો રથ તો ક્યારનો યે બળી ને ભસ્મ થઈ ચૂક્યો હતો.

ભીષ્મ,

કૃપાચાર્ય,

દ્રોણાચાર્ય,

અને

કર્ણ ના

દિવ્યાસ્ત્રોથી તે રથ નષ્ટ થઈ ચૂક્યો હતો,  *મારા સંકલ્પે એને યુદ્ધ સમાપ્તિ સુધી જિવીત રાખ્યો હતો."*

પોતાની શ્રેષ્ઠતા ના મદ મા ખોવાયેલ અર્જુન નુ અભિમાન ચકનાચૂર થઈ ગયુ.

પોતાનુ સર્વસ્વ ત્યાગી ને તે ભગવાન ના ચરણો મા નતમસ્તક થઈ ગયો.
અભિમાન નો ખોટો ભાર ઉતારી ને હલકાપણ અનુભવતો હતો.

       ગીતા શ્રવણ મા આથી વિશેષ શુ ઉપદેશ હોઈ શકે કે," બધુ જ કર્તાહર્તા ભગવાન જ છે, આપણે તો ફક્ત કઠપુતળી જ છીએ."

કાશ, આપણા અંદર નો અર્જુન આ સમજી જાય.

ઘમંડ જીવન મા કષ્ટ જ આપે છે.     

અહંકાર છોડો........

પરંતુ
સ્વાભિમાન માટે લડતા રહો........!!


Tuesday, January 03, 2017

Tulsi - A tree of healthy happiness


सुख-शांति, समृद्धि व आरोग्य प्रदायिनी तुलसी

🌹तुलसी का स्थान भारतीय संस्कृति में पवित्र और महत्त्वपूर्ण है । तुलसी को माता कहा गया है । यह माँ के समान सभी प्रकार से हमारा रक्षण व पोषण करती है । तुलसी पूजन, सेवन व रोपण से आरोग्य-लाभ, आर्थिक लाभ के साथ ही आध्यात्मिक लाभ भी होते हैं ।

देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य, शांति से जन-समाज का जीवन मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से प्राणिमात्र के हित चिंतक पूज्य बापूजी की पावन प्रेरणा से २५ दिसम्बर को पूरे देश में ‘तुलसी पूजन दिवस मनाना प्रारम्भ किया जा रहा है । तुलसी पूजन से बुद्धिबल, मनोबल, चारित्र्यबल व आरोग्यबल बढेगा । मानसिक अवसाद, आत्महत्या आदि से लोगों की रक्षा होगी और लोगों को भारतीय संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषि-विज्ञान का लाभ मिलेगा ।

‘स्कंद पुराण के अनुसार ‘जिस घर में तुलसी का बगीचा होता है अथवा प्रतिदिन पूजन होता है उसमें यमदूत प्रवेश नहीं करते । तुलसी की उपस्थितिमात्र से हलके स्पंदनों, नकारात्मक शक्तियों एवं दुष्ट विचारों से रक्षा होती है ।

‘गरुड पुराण के अनुसार ‘तुलसी का वृक्ष लगाने, पालन करने, सींचने तथा ध्यान, स्पर्श और गुणगान करने से मनुष्यों के पूर्व जन्मार्जित पाप जलकर विनष्ट हो जाते हैं ।
(गरुड पुराण, धर्म कांड-प्रेतकल्प : ३८.११)

🌹दरिद्रतानाशक तुलसी
* ईशान कोण में तुलसी का पौधा लगाने से तथा पूजा के स्थान पर गंगाजल रखने से बरकत होती है ।
विदेशों में भी होती है तुलसी पूजा
मात्र भारत में ही नहीं वरन् विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय व शुभ माना गया है । ग्रीस में इस्टर्न चर्च नामक सम्प्रदाय में तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेजिल जयंती के दिन ‘नूतन वर्ष भाग्यशाली हो इस भावना से देवल में चढाई गयी तुलसी के प्रसाद को स्त्रियाँ अपने घर ले जाती थीं ।

🌹फ्रेंच डॉक्टर विक्टर रेसीन ने कहा है : ‘‘तुलसी एक अद्भुत औषधि (Wonder Drug) है, जो ब्लडप्रेशर व पाचनतंत्र के नियमन, रक्तकणों की वृद्धि एवं मानसिक रोगों में अत्यंत लाभकारी है ।
तुलसी एक, लाभ अनेक
तुलसी शरीर के लगभग समस्त रोगों में अत्यंत असरकारक औषधि है ।

🌹* यह प्रदूषित वायु का शुद्धीकरण करती है तथा इससे प्राणघातक और दुःसाध्य रोग भी ठीक हो सकते हैं ।

🌹* प्रातः खाली पेट तुलसी का रस पीने अथवा ५-७ पत्ते चबाकर पानी पीने से बल, तेज और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है ।

🌹* तुलसी गुर्दे की कार्यशक्ति को बढाती है । कोलेस्ट्रोल को सामान्य बना देती है । हृदयरोग में आश्चर्यजनक लाभ करती है । आँतों के रोगों के लिए तो यह रामबाण है ।

🌹* नित्य तुलसी-सेवन से अम्लपित्त (एसिडिटी) दूर हो जाता है, मांसपेशियों का दर्द, सर्दी-जुकाम, मोटापा, बच्चों के रोग विशेषकर कफ, दस्त, उलटी, पेट के कृमि आदि में लाभ होता है ।

🌹* चरक सूत्र में आता है कि ‘तुलसी हिचकी, खाँसी, विषदोष, श्वास रोग और पाश्र्वशूल को नष्ट करती है । वह वात, कफ और मुँह की दुर्गंध को नष्ट करती है ।

🌹* घर की किसी भी दिशा में तुलसी का पौधा लगाना शुभ व आरोग्यरक्षक है ।

🌹* ‘तुलसी के निकट जिस मंत्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है, वह सब अनंत गुना फल देनेवाला होता है ।               (पद्म पुराण)

* ‘मृत्यु के समय मृतक के मुख में तुलसी के पत्तों का जल डालने से वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के लोक में जाता है ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड : २१.४२)

🌹वैज्ञानिक तथ्य
* डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि ‘तुलसी में एंटी ऑक्सीडंट गुणधर्म है और वह आण्विक विकिरणों से क्षतिग्रस्त कोशों को स्वस्थ बना देती है । कुछ रोगों एवं जहरीले द्रव्यों, विकिरणों तथा धूम्रपान के कारण जो कोशों को हानि पहुँचानेवाले रसायन शरीर में उत्पन्न होते हैं, उनको तुलसी नष्ट कर देती है ।

🌹* तिरुपति के एस.वी. विश्वविद्यालय में किये गये एक अध्ययन के अनुसार ‘तुलसी का पौधा उच्छ्वास में ओजोन वायु छोडता है, जो विशेष स्फूर्तिप्रद है ।

🌹* आभामंडल नापने के यंत्र ‘यूनिवर्सल स्केनर के माध्यम से तकनीकी विशेषज्ञ श्री के.एम. जैन द्वारा किये गये परीक्षणों से यह बात सामने आयी कि ‘यदि कोई व्यक्ति प्रतिदिन तुलसी या देशी गाय की परिक्रमा करे तो उसके शरीर में धनात्मक ऊर्जा बढ जाती है, जिससे शरीर पर रोगों के आक्रमण की सम्भावना भी काफी कम हो जाती है । यदि कोई व्यक्ति तुलसी के पौधे की ९ बार परिक्रमा करे तो उसके आभामंडल के प्रभाव-क्षेत्र में ३ मीटर की आश्चर्यकारक बढोतरी होती है ।

🌹तुलसी नामाष्टक
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनीं विश्वपूजिताम् । 
पुष्पसारां नन्दिनीं च तुलसीं कृष्णजीवनीम् ।।
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् । 
यः पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ।।
भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : ‘वृंदा, वृंदावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी - ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं । यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है । जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है ।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खंड : २२.३२-३३)
सं. : लोकसे - २०१